चुरिया के पुनरुद्धार

8/4/2025
एहि बेर नेपालक तराई आ मधेश क्षेत्र मे दशककें सभसँ बेसी रौदी भेल अछि। जलवायु विज्ञान आ मौसम विभागक अनुसार, सामान्यतः १० सँ १५ जूनक बीच आबय वाला मानसून एहि साल किछु दिन पहिलहि आबि गेल। मुदा, मौसम वैज्ञानिकसभक कहब अछि जे नेपाल मे अनुमानसँ कम बरखा जलवायु परिवर्तनक कारण भेल अछि।
देशक दोसर भागमे बरखाक अनुपात एतेक महत्वपूर्ण नहि अछि। एहि साल बरखाक पूर्वानुमान पूरा नहि भेल, जाहि पर चर्चा भ रहल अछि।नेपालक तराई-मधेश क्षेत्र देशक दोसर महत्वपूर्ण जलाशयक रूपमे जानल जाइत अछि। एहि क्षेत्र मे पर्याप्त बरखा नहि भेल, जाहि कारण किसानसभ धान रोपण मे असमर्थ रहल, जेकर फलस्वरूप खाद्य संकटक खतरा उत्पन्न भेल अछि।
नेपाल जीवन स्तर मापन सर्वेक्षण २०७८ के अनुसार, मधेश प्रदेशक ५८.२ प्रतिशत घर कृषि कार्यमे संलग्न अछि। मधेश प्रदेशक शहरी क्षेत्रमे ५५.२ प्रतिशत आ ग्रामीण क्षेत्रमे ६७.२ प्रतिशत घर कृषिमे निर्भर अछि। एहि स स्पष्ट अछि जे मधेश प्रदेशक समग्र कृषि रोजगारमे महत्वपूर्ण योगदान अछि, मुदा देशक कुल कृषि उत्पादनमे एकर हिस्सा सीमित अछि।
विभिन्न अध्ययनसँ पता चलल अछि जे तराई क्षेत्रमे छोट किसान आ भूमिहीन किसानक अनुपात सेहो बेसी अछि।तराई-मधेश क्षेत्रमे पलायनक दर दशकंसँ अधिक रहल अछि। पहाड़ी क्षेत्रमे कम उत्पादन आ उत्पादकताक कारण रोजगार आ आयक खोजमे पलायन, जनसंख्या वृद्धि, आ पड़ोसी देशसँ तराई-मधेश क्षेत्रमे आवागमन १९६० के दशकसँ जारी अछि।
जनसंख्या दबावक संग-संग अनियोजित शहरीकरण सेहो बढ़ल अछि, जाहि स कृषि उत्पादन आ अन्य उत्पादन प्रणाली पर गंभीर असर पड़ल अछि।राष्ट्रिय सांख्यिकी कार्यालयक ग्रामीण आ शहरीकरण प्रतिवेदनक अनुसार, तराई-मधेशक शहरी जनसंख्या मे तीव्र वृद्धि भ रहल अछि।
शहरी क्षेत्रक विशेषता अछि जे एकर जनसंख्या घनत्व आ विविधता बेसी अछि। सन् २०११ सँ २०२१ तकक आंकड़ा सँ तराई क्षेत्रमे शहरी आ ग्रामीण जनसंख्याक वितरणमे बड़ बदलाव देखल गेल अछि। सन् २०११ मे तराईक शहरी नगरपालिकाक जनसंख्या ८,४५६,२६५ (कुलक ३२.२ प्रतिशत) आ ग्रामीण नगरपालिकाक जनसंख्या ३,६९८,१५ (कुलक १४.१ प्रतिशत) छल। सन् २०२१ तक शहरी नगरपालिकाक जनसंख्या बढ़ि कऽ १,६७,०९,३६३ (कुलक ३४.८ प्रतिशत) आ ग्रामीण नगरपालिकाक जनसंख्या ४,१४,४६,२३ (कुलक १४.३ प्रतिशत) भ गेल।विशेष रूपसँ मधेश प्रदेशमे जनसांख्यिकीय परिवर्तन उल्लेखनीय अछि। सन् २०११ मे मधेशक शहरी जनसंख्या १६.९२ प्रतिशत छल, जे २०२१ मे बढ़ि कऽ ४८.०८ प्रतिशत भ गेल। जनगणनाक आंकड़ाक अनुसार, मधेश प्रदेशक कुल जनसंख्याक २०.०७ प्रतिशत शहरी क्षेत्रमे, ७३.५ प्रतिशत अर्ध-शहरी क्षेत्रमे, आ ५.८ प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रमे रहैत अछि।
ई आंकड़ा देखाबैत अछि जे मधेश प्रदेशमे तीव्र शहरीकरण भेल अछि, मुदा बहुत सारा ‘शहरी’ क्षेत्र कार्यात्मक रूपसँ अर्ध-शहरी या ग्रामीण छै।तराई-मधेशमे अनियोजित शहरीकरणक परिणाम धीरे-धीरे स्पष्ट भ रहल अछि। शहरी, अर्ध-शहरी, या शहरोन्मुख क्षेत्रक विकासक लेल खेती योग्य जमीन या वन क्षेत्र पर अतिक्रमण करय पड़ैत अछि।चुरे क्षेत्रमे अतिक्रमण आ पर्यावरणीय संकटनेपालक एकीकरणक बाद राणा शासनक समयमे देशक आर्थिक आ सामाजिक विकास ठप्प रहल। २००७ सालक क्रान्ति आ लोकतन्त्रक स्थापनाक बाद विकासक मार्ग खुलल। १९६० के दशकमे मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम आ पूर्व-पश्चिम राजमार्गक निर्माणसँ तराई आ चुरे क्षेत्रमे बृहद पलायन प्रोत्साहित भेल। सरकार म्यांमारसँ घुरल नेपाली मूलक लोकक बसावट आ भूमिहीनताक समाधानक लेल वन भूमि बांटलक, जाहि स जंगल कटाई मे तेजी आयल।
२०३४ सालक भूमि ऐनमे जंगल सँ आच्छादित जमीन सरकारी संपत्तिक रूपमे परिभाषित भेल, जाहि स जंगल कटाई आ बढ़ल। लोक अपन मालिकाना हकक रक्षा लेल निजी जमीन पर गाछ काटय लागल। २०२२/२३ सालक बाद चुरे क्षेत्रमे बस्ती स्थापना शुरू भेल।
पहाड़ी क्षेत्रसँ सिन्धुली (१९४८-१९६१), धनुषा (१९६१), बारा (१९६४), आ उदयपुर (१९७० के दशक) मे पलायनक इतिहास अछि। २०३६ के जनमत संग्रह सँ २०४६ के परिवर्तन तक चुरे आ महाभारत श्रृंखलाक वन क्षेत्रमे व्यापक अतिक्रमण शुरू भेल। १९८० के दशकक बाद बस्ती विकासक संग चुरे पहाड़मे खेती योग्य जमीन देखाय लागल। एहि दौरान आंतरिक पलायन आ जनसंख्या वृद्धिक कारण वन संसाधन पर दबाव बढ़ल।एक अध्ययनक अनुसार, १९९५ सँ २०१० तक चुरेक २७ जिलासभमे (नवलपरासी, दाङ, सिन्धुली, सुर्खेत, मकवानपुर आदि) जंगल कटाई भेल। २०१४ के चुरे वन संसाधन आकलन सँ पता चलल जे १९९५ सँ २०१० तक ३८,००० हेक्टेयरसँ बेसी जंगल साफ भ गेल।चुरे क्षेत्रमे बालु, गिट्टी, आ पत्थरक मांग बढ़बाक कारण क्रशर उद्योग फुलल-पफुलल।
जिला विकास समितिसभ एहन सामग्रीक निर्यातक लाइसेंससँ भारी राजस्व कमाय लागल। संघीयकरणक बाद स्थानीय सरकार चुरे संसाधनसँ राजस्व पर बेसी निर्भर भेल, जाहि स नदी सामग्रीक अत्यधिक निर्यात प्रोत्साहित भेल। पर्यावरण संरक्षणसँ बेसी राजस्वक प्राथमिकता देल गेल।एकर परिणाम घातक भेल। चुरे क्षेत्र आ एकर नीचाँक मैदान (भवाड, तराई, मधेश) मे धारा, नदी, पोखरि, झील, आ आर्द्रभूमि सुखाय लागल। पहिने १५-२० फीट गहराइमे पानि भेटैत छल, मुदा आब २०० फीटसँ नीचाँ सेहो पानि नहि भेटैत अछि।
चुरे आ एकर आसपासक पारिस्थितिकी चक्र बाधित भ गेल, जाहि स अल्पकालिक सूखा दीर्घकालिक मरुस्थलीकरणमे बदलि गेल।अध्ययनसँ पता चलल अछि जे चुरे क्षेत्रसँ निकलय वाला नदीसभ सालाना ७८० सँ २०,००० टन प्रति वर्ग किलोमीटर तलछट ढोबैत अछि।
जंगल कटाई आ अत्यधिक खननक कारण बाढ़मे तलछटक मात्रा बढ़ल, जाहि स नदीक स्तर ऊँच भ गेल। मानसूनमे नदीक प्रवाहमे बदलाव आबैत अछि, आ तराई-मधेशक कृषि भूमि पर बालु आ अन्य सामग्रीक जमाव बढ़ रहल अछि।चुरे संरक्षणक प्रयासनेपालक सबसँ कम उम्रक पर्वत श्रृंखला चुरे देशक कुल क्षेत्रफलक १२.७८ प्रतिशतमे फैलल अछि, जे ३६ जिलामे अछि। एकर ७२.३७ प्रतिशत क्षेत्र जंगलसँ आच्छादित अछि।
चुरे तराईक लेल भूजल रिचार्जक महत्वपूर्ण क्षेत्र अछि, मुदा एकर महत्व ठीकसँ नहि बुझल गेल।चुरे संरक्षणक लेल किछु प्रयास भेल अछि। १९९० के दशकमे जर्मन तकनीकी सहायता (टीजेड/जीआईजेड) सँ चुरिया वन विकास परियोजना (१९९९-२००५) शुरू भेल। विश्व बैंक आ अन्य अन्तर्राष्ट्रिय सहयोगसँ सामुदायिक वन कार्यक्रम आ राष्ट्रपति चुरे-तराई मधेश संरक्षण विकास समितिक तहत अरबौं रुपियाँक निवेश भेल अछि। मुदा, सीमित सामुदायिक वन क्षेत्र छोड़ि, परिणाम निराशाजनक रहल।
अधिकांश सामुदायिक वनक मॉडल चुरे आ तराई क्षेत्रमे विपरीत परिणाम देखबैत अवस्थामे आबि गेल अछि। तराई आ चुरेमे मुख्य रूपसँ व्यावसायिक काठ कटाईक लेल बहुत सारा सामुदायिक वन समूह शामिल भेल अछि, जे खराब उदाहरणक रूपमे देखाइत अछि। राष्ट्रपति चुरे-तराई मधेश संरक्षण विकास समितिसँ ल कए ‘ग्रीन क्लाइमेट फंड’ (जीसीएफ) द्वारा एफएओ आ नेपाल सरकारक लगानीमे सन् २०२० सँ संचालित ‘बिल्डिंग अ रेजिलियन्ट चुरिया रिजन इन नेपाल’ (बीआरसीआरएन) परियोजनामे लगभग ५ अर्ब रुपियाँ (कुल ४ करोड ७४ लाख ३० हजार अमेरिकी डलर, जीसीएफसँ ३ करोड ९३ लाख ९० हजार अमेरिकी डलर, आ नेपाल सरकारसँ ८० लाख ४० हजार अमेरिकी डलर) लगानी भेलाक बावजूद चुरेक पुनर्जीवनक लेल कोनो ठोस आधार अखनो नहि देखाइत अछि। प्रारंभिक सामुदायिक वन आ बादक चुरे कार्यक्रम दुनू स्थानीय सहभागिता आ वैकल्पिक जीविकोपार्जनक महत्वकए स्वीकार कयने अछि। जबतक स्थानीय सहभागितामे, अर्थात् सरोकारवाला पक्ष आ लाभग्राहीसभक समान प्रतिनिधित्व नहि होयत; चुरे पुनर्जीवनक बात खाली खोखला गप्पमे सीमित रहत।